एक  नयी  सोच, एक  नया  ख्याल
ज़िन्दगी  को  देखने  का  नया  दृष्टिकोण
बदल  जाती  है  यूँ  ज़िन्दगी
लेकर  पल  भर  का  मौन

धारा  सी  फूट  पड़ी  है  कहीं  पत्थरों  से
और  बहती  ही  चली  जाती  है
सुलगती  ज्वालामुखी  सी  उत्सुक  थी  कहीं  वोह
जैसे  आज़ाद  हो  जाती  है

अंत  तो  फिर  भी  है  निश्चित
पर  मंजिलों  की  फ़िक्र  किसे  है
राहों  को  मंजिल  बनके
बस  चलते  जाना  है